Tag Archives: Rasashastra – Parad

पारद के खानों में काम करने वाले श्रमिकों को पारद जन्य कष्ट/पारद विकार चिकित्सा (Mercurial Poisoning Treatment in Ayurveda

“पारद”, “अभ्रकभस्म”, और उनसे जुड़े विकारों, चिकित्सा, निर्माण विधि, औषधियों आदि से संबंधित हैं, जो आयुर्वेदिक चिकित्सा और रसशास्त्र (Alchemy in Ayurveda) के अंतर्गत आते हैं। नीचे इन बिंदुओं को एक क्रमबद्ध और व्यवस्थित रूप में समझाया गया है:


1. पारद के खानों में काम करने वाले श्रमिकों को पारद जन्य कष्ट

  • पारद (Mercury) अत्यंत विषैला होता है, विशेषकर उसकी वाष्प। इसके खान या रिफाइनरी में काम करने वाले श्रमिकों को निम्न प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं:
    • त्वचा रोग
    • मानसिक विकार
    • हृदयगति में असामान्यता
    • पाचन विकार
    • अनिद्रा, चक्कर, कंपकंपी
    • गुर्दे और यकृत पर प्रभाव

2. पारद विकार / पारद वाष्पज विकार लक्षण

  • पारद के संपर्क से उत्पन्न विकारों के लक्षण:
    • थकावट, अत्यधिक पसीना
    • सिर दर्द, चक्कर
    • हाथ-पैरों में कंपन
    • ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
    • त्वचा पर रैश, खुजली
    • सांस लेने में तकलीफ (वाष्प के कारण)

3. अतिरिक्त पारद विकार

  • यदि पारद का लंबे समय तक अत्यधिक संपर्क या सेवन हो:
    • स्मृति लोप
    • मानसिक विकृति
    • बाँझपन
    • श्वसन रोग

4. पारद विकार चिकित्सा (Mercurial Poisoning Treatment in Ayurveda)

  • शोधन क्रियाएं: वमन, विरेचन, बस्ती
  • औषधियां:
    • अभ्रक भस्म
    • शंखवटी
    • त्रिफला
    • गिलोय सत्व
    • गंधक रसायन
  • रसायन चिकित्सा

5. अभ्रक भस्म (Abhraka Bhasma)

5.1 शुद्ध अभ्रक का महत्त्व

  • अशुद्ध अभ्रक विषैला हो सकता है।
  • शुद्ध अभ्रक से बनी भस्म ही चिकित्सकीय प्रयोग के लिए उपयुक्त है।

5.2 अभ्रकभस्म निर्माण में पुट संख्या

  • पारंपरिक विधि में 100 या उससे अधिक पुट (विशेष प्रकार की गर्मी) दिए जाते हैं।
  • प्रत्येक पुट से भस्म अधिक सूक्ष्म और प्रभावशाली होती है।

5.3 अभ्रकभस्म विधि-३ / विधि-४

  • विधि ३: गोदुग्ध और त्रिफला क्वाथ के साथ भंजन कर पुट देना
  • विधि ४: निर्गुण्डी क्वाथ, गिलोय रस आदि के साथ पुट देना

5.4 अभ्रकभस्म अमृतीकरण

  • यह प्रक्रिया अभ्रक भस्म को “अमृततुल्य” बनाने की होती है, जिससे वह रोगनाशक और रसायन गुणों से युक्त हो जाती है।

6. अभ्रकभस्म के गुण

  • तेजोमय (ऊर्जा देने वाला)
  • रसायन (जीवनवर्धक)
  • मानसिक शक्ति बढ़ाने वाला
  • वात-पित्त-कफ नाशक
  • श्वास, क्षय, ज्वर, खांसी, बुखार, कमज़ोरी आदि में उपयोगी

7. अभ्रकमारक औषधिगण

  • वे औषधियाँ जो अभ्रक भस्म के साथ मिलकर विष का नाश करें:
    • त्रिफला
    • गिलोय
    • शतावरी
    • ब्राह्मी
    • मूलिका
    • शंखपुष्पी

8. पथ्यापथ्य विवेचन

पथ्य (अनुकूल आहार-विहार)

  • गर्म जल, लघु आहार
  • घृतयुक्त भोजन
  • शुद्ध देशी गाय का दूध
  • योग, ध्यान

अपथ्य (वर्जित चीजें)

  • तीखा, तला हुआ भोजन
  • अत्यधिक श्रम
  • मानसिक तनाव
  • शराब, धूम्रपान

9. पारदसेवन काल में पथ्य

  • शुद्ध जल
  • त्रिफला का सेवन
  • उचित निद्रा
  • मुनक्का, खजूर
  • घृत सेवन

10. पारद भस्म सेवन में अपथ्य

  • अम्लीय पदार्थ
  • खटाई, टमाटर, नींबू
  • गरिष्ठ भोजन
  • बासी भोजन

11. क्रामणयोग्य पारद भस्म

  • क्रामणयोग्य पारद वह होता है जो:
    • शरीर में बिना विकार उत्पन्न किए संचरित हो सके
    • पंचामृत, रसायन प्रक्रियाओं से शुद्ध किया गया हो
    • यथोचित संसकार एवं संस्कारित हो