Tag Archives: Rasa Paddhati

रसपद्धति, रसशास्त्र (पारद), रसेश्वर दर्शन और प्रशस्ति


1. रसपद्धति (Rasa Paddhati)

  • रसपद्धति एक प्राचीन ग्रंथ या पद्धति है जो रसशास्त्र (रसायन विज्ञान) और धातु विज्ञान से संबंधित है।
  • इसमें धातुओं के शोधन, मिश्रण और उनके उपयोग से संबंधित विधियों का वर्णन मिलता है।
  • इसका उद्देश्य देहवध (शरीर को अक्षय बनाना) और मोक्ष प्राप्त करना था।

2. रसशास्त्र (पारद) (Rasashastra – Parad)

  • रसशास्त्र भारतीय आयुर्वेद और रसायन विज्ञान की एक शाखा है, जिसमें पारद (पारा) सहित विभिन्न धातुओं और खनिजों का चिकित्सा में उपयोग किया जाता है।
  • पारद (पारा) को रसशास्त्र में “शिव वीर्य” माना जाता है और इसे विशेष प्रक्रियाओं (जैसे संस्कार) द्वारा शुद्ध करके औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • प्रमुख ग्रंथ: रसरत्नसमुच्चय, रसेंद्रचूड़ामणि, आदि।

3. प्रशस्ति (Prashasti)

  • प्रशस्ति का अर्थ है “स्तुति” या “प्रशंसा”। प्राचीन भारत में यह राजाओं, दार्शनिकों या विद्वानों की उपलब्धियों का वर्णन करने वाले शिलालेखों या काव्यात्मक रचनाओं को कहते हैं।
  • रसशास्त्र के संदर्भ में, कुछ ग्रंथों में रसायन विद्या की प्रशस्ति (महिमा) का वर्णन मिलता है।

4. रसेश्वर दर्शन (Raseshwar Darshana)

  • यह एक दार्शनिक सम्प्रदाय है जो शैव दर्शन और रसशास्त्र का समन्वय करता है।
  • इसके अनुसार, पारद (पारा) शिव का प्रतीक है और इसके माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
  • रसेश्वर दर्शन में भौतिक रसायन विज्ञान को आध्यात्मिक उन्नति से जोड़ा गया है।
  • प्रमुख ग्रंथ: रसेश्वरसिद्धांत, आनंदभैरव आदि।

संक्षेप में:

  • रसपद्धति → रसायन विज्ञान की प्रायोगिक पद्धति।
  • रसशास्त्र (पारद) → आयुर्वेदिक धातु विज्ञान और पारद चिकित्सा।
  • प्रशस्ति → रसशास्त्र की महिमा का वर्णन।
  • रसेश्वर दर्शन → रसायन और अद्वैत शैव दर्शन का मिलन।

ये सभी भारतीय ज्ञान परंपरा के अनूठे पहलू हैं, जहाँ विज्ञान, दर्शन और आध्यात्मिकता का समन्वय हुआ है।