
(1) प्राचीन काल (Ancient Period)
- वैदिक युग (Vedic Era):
- ऋग्वेद (1500–1000 BCE) में सोमरस (Soma) का उल्लेख, जो एक दिव्य रसायन माना जाता था।
- अथर्ववेद में धातुओं (लोहा, ताम्र) के चिकित्सीय प्रयोग।
- महाभारत काल:
- नागार्जुन (लगभग 7वीं-8वीं शताब्दी CE) को रसशास्त्र का प्रणेता माना जाता है।
(2) मध्यकाल (Medieval Period)
- रसचिकित्सा (Rasa Chikitsa) का विकास हुआ, जिसमें पारद (Mercury) और गंधक (Sulfur) को औषधि में प्रयुक्त किया गया।
- लोहसर्वस्वम् जैसे ग्रंथों में धातुकर्म (Metallurgy) पर विस्तृत ज्ञान दिया गया।
(3) आधुनिक काल (Modern Period)
- भारतीय आयुर्वेदिक फार्माकोपिया में रसशास्त्र के अनुसार भस्म (Bhasma) और रसायन (Rasayana) का मानकीकरण हुआ।
लोहसर्वस्वम् (Lohasarvam)
- लेखक: अज्ञात (कुछ विद्वान इसे नागार्जुन से जोड़ते हैं)।
- विषय:
- लोहे का शोधन (Purification of Iron)।
- विभिन्न प्रकार के इस्पात (Steel) का निर्माण।
- औषधीय प्रयोग (Therapeutic uses of Iron in anemia, weakness)।
- महत्व:
- भारतीय धातु विज्ञान (Metallurgy) का प्राचीन ग्रंथ।
नागार्जुन (Nagarjuna)
- प्रमुख ग्रंथ:
- रसरत्नाकर (Rasaratnakara) – पारद (Mercury) और धातु शोधन पर विस्तृत ज्ञान।
- काकचंडेश्वरिमतम् (Kakachandeshwarimata) – कीमियागरी (Alchemy) से संबंधित।
- योगदान:
- पारद के साथ गंधक (Sulfur) को मिलाकर कज्जली (Kajjali) बनाने की विधि।
- स्वर्ण, रजत, ताम्र आदि धातुओं का औषधीयकरण।
रससार (Rasasara)
- लेखक: गोविंदाचार्य (Govindacharya)।
- विषय:
- रस (Mercury) और उपरस (Subsidiary metals/minerals) का वर्गीकरण।
- विभिन्न रसायनों की तैयारी (Preparation of Rasaushadhis)।
- प्रसिद्ध सिद्धांत:
“रसेन हीनं सर्वं हीनं, रसयुक्तं सर्वं युक्तम्”
(Without Rasa, everything is incomplete; with Rasa, everything is complete.)
रसशास्त्र के अन्य आचार्य (Other Acharyas of Rasashastra)
आचार्य | ग्रंथ | योगदान |
---|---|---|
सोमदेव | रसेंद्रचूड़ामणि | रस-भस्म निर्माण |
यशोधर | रसप्रकाशसुधाकर | रसायन विज्ञान पर टीका |
वाग्भट्ट | रसराजसुन्दरी | रस चिकित्सा |
माधव | रसायनसार | धातु-संस्कार |
चरक & सुश्रुत | चरक संहिता, सुश्रुत संहिता | आयुर्वेद में रसशास्त्र का समावेश |
निष्कर्ष (Conclusion)
- रसशास्त्र आयुर्वेद का एक महत्वपूर्ण अंग है जो धातुओं और खनिजों को शुद्धिकरण (Purification) और औषधीकरण (Medicinal Processing) द्वारा रोग निवारण में प्रयोग करता है।
- नागार्जुन, लोहसर्वस्वम्, रससार जैसे ग्रंथों ने इस विज्ञान को समृद्ध किया।
- आधुनिक शोध में भस्म (Bhasma) और रसायन (Rasayana) की प्रभावकारिता का अध्ययन जारी है।
चिकित्सकीय सुझाव (Medical Advice):
रसशास्त्र की औषधियाँ (जैसे स्वर्ण भस्म, लौह भस्म) केवल योग्य वैद्य/आयुर्वेद चिकित्सक की देखरेख में ही प्रयोग करें।
संदर्भ (References):
- आयुर्वेद फार्माकोपिया ऑफ इंडिया (API)
- रसरत्नाकर (नागार्जुन)
- भावप्रकाश निघंटु