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Main Apparatuses and Puta Processes of Ayurvedic Rasashastra

आयुर्वेदिक रसशास्त्र के मुख्य यन्त्र एवं पुट प्रक्रियाएँ

प्रस्तावना / Introduction: रसशास्त्र आयुर्वेद कीवह शाखा है जिसमें धातुओं, खनिजों एवं विषैले पदार्थों का शुद्धिकरण, मारण (भस्मीकरण) और उनके औषधीय उपयोग का अध्ययन किया जाता है। इसके लिए विशिष्ट यन्त्रों (apparatus) और पुट (incineration furnaces/processes) का प्रयोग किया जाता है। Rasashastra is the branch of Ayurveda that deals with the purification, incineration (Marana), and medicinal utilization of metals, minerals, and toxic substances. This requires the use of specific apparatuses (Yantras) and incineration processes (Putas).


भाग १: पुट प्रक्रियाएँ (Puta Processes of Incineration)

१. पुट (Puta)

· परिभाषा (Definition): वह प्रक्रिया जिसमें शुद्धिकृत द्रव्य को विशिष्ट माध्यम (जैसे कि कंदों का रस, गोमूत्र, आदि) में मर्दन (trituration) करके उसकी छोटी-छोटी पिण्डियाँ (pellets) बनाकर, उन्हें विशेष रूप से निर्मित भट्ठी में एक निश्चित संख्या में कोयले की आग पर गर्म किया जाता है।
· प्रयोजन (Purpose): द्रव्यों का मारण (कैल्सिनेशन) करना ताकि वे सूक्ष्म, रेडियो-अपघट्य (insoluble), सरल पचने योग्य (easily digestible) और अधिक गुणकारी बन सकें।
· फल (Result): द्रव्य का भस्म (Calx/Ash) प्राप्त होता है, जो रासायनिक रूप से परिवर्तित, निष्क्रिय (detoxified) और अत्यधिक श्वेतवर्णीय (white), हल्का (light) तथा चिकना (smooth) पाउडर होता है।

२. महापुट (Mahaputa – The Major Incineration)

· विशेषता: अत्यधिक उच्च तापमान वाली प्रक्रिया। इसमें 100 से अधिक कोयले जलाए जाते हैं।
· प्रयोग: बहुत कठोर धातुओं जैसे लोहा (Iron), अभ्रक (Mica) आदि के मारण के लिए।

३. गजपुट (Gajaputa – Elephant-like Incineration)

· विशेषता: महापुट के समान ही शक्तिशाली प्रक्रिया। पारंपरिक रूप से इसमें 1000 कोयले जलाए जाते थे।
· प्रयोग: अत्यंत कठोर खनिजों के लिए।

४. वाराहपुट (Varahaputa – Boar-like Incineration)

· विशेषता: मध्यम तापमान वाली प्रक्रिया। इसमें 50 कोयले जलाए जाते हैं।
· प्रयोग: ताम्र (Copper), स्वर्ण (Gold) आदि धातुओं के मारण के लिए।

५. कपोतपुट (Kapotaputa – Dove-like Incineration)

· विशेषता: हल्के तापमान वाली प्रक्रिया। इसमें 30 कोयले जलाए जाते हैं।
· प्रयोग: चाँदी (Silver), सीसा (Lead) आदि नरम धातुओं के लिए।

६. कुक्कुटपुट (Kukkutaputa – Cock-like Incineration)

· विशेषता: कपोतपुट के समान हल्की प्रक्रिया। इसमें भी लगभग 30 कोयलों का प्रयोग होता है।
· प्रयोग: अभ्रक (Mica) के मारण में प्रमुखता से उपयोग।


भाग २: प्रमुख यन्त्र (Main Apparatuses)

७. तिर्यक्षातनयन्त्र (Tiryak Shatanayana Yantra)

· आधुनिक समतुल्य: Distillation Apparatus
· संरचना एवं प्रयोजन: इसमें एक आधार पात्र (डिस्टिलिंग फ्लास्क), एक तिरछी नली (वङ्कनाल जो Condenser का कार्य करती है) और एक ग्रहण पात्र (Receiver Flask) होता है। इसका उपयोग तरल पदार्थों को आसवन (Distillation) द्वारा शुद्ध करने के लिए किया जाता था, जैसे अल्कोहल, सुगंधित जल आदि।

८. वङ्कनाल (Vankanala)

· आधुनिक समतुल्य: Condenser Tube or Liebig Condenser
· संरचना एवं प्रयोजन: यह तिर्यक्षातनयन्त्र का वह तिरछा नलिका वाला भाग है जो वाष्प को ठंडा करके द्रव में संघनित (Condense) करता है।

९. भूधरयन्त्र (Bhudhar Yantra)

· आधुनिक समतुल्य: Sublimation Apparatus
· संरचना एवं प्रयोजन: दो पात्रों (ऊपर और नीचे) से मिलकर बना होता है। निचले पात्र में उर्ध्वपातन होने वाला द्रव्य (जैसे गंधक – Sulphur) रखकर गर्म किया जाता है। वाष्प ऊपर के पात्र में जमा हो जाती है। इस प्रक्रिया को उर्ध्वपातन (Sublimation) कहते हैं।

१०. खल्वयन्त्र (Khalwa Yantra)

· आधुनिक समतुल्य: Mortar and Pestle
· संरचना एवं प्रयोजन: पत्थर या धातु का बना एक खरल (mortar) और मूसल (pestle)। इसका उपयोग द्रव्यों को महीन पीसने (Trituration/Levigation) और उनमें भावना (Impregnation) देने के लिए किया जाता है।

११. तुलायन्त्र (Tula Yantra)

· आधुनिक समतुल्य: Weighing Balance
· संरचना एवं प्रयोजन: सटीक मापन के लिए सबसे महत्वपूर्ण यंत्र। औषधि निर्माण में द्रव्यों की मात्रा का सही होना अति आवश्यक है।

१२. कच्छपयन्त्र (Kachchhapa Yantra)

· आधुनिक समतुल्य: Tortoise-shaped Closed Apparatus
· संरचना एवं प्रयोजन: कछुए के आकार का एक बंद यंत्र। इसका मुख्य उपयोग पारे (Mercury) के शुद्धिकरण (Purification) की विशिष्ट प्रक्रियाओं (जैसे मूर्छन) के लिए किया जाता था।

१३. गर्भयन्त्र (Garbha Yantra)

· आधुनिक समतुल्य: Sealed Container or Digestion Apparatus
· संरचना एवं प्रयोजन: एक वायुरोधी बंद पात्र। इसका उपयोग उन प्रक्रियाओं के लिए किया जाता था जहाँ वायु के सम्पर्क में आने से द्रव्य खराब हो सकता है या जहाँ नियंत्रित दबाव की आवश्यकता होती है।

१४. पातालयन्त्र (Patala Yantra)

· आधुनिक समतुल्य: Underground Pit Furnace
· संरचना एवं प्रयोजन: जमीन में गड्ढा खोदकर बनाई जाने वाली भट्ठी। इसका उपयोग लंबे समय तक नियंत्रित और एकसमान ताप देने के लिए किया जाता था।

१५. भाण्डपुट (Bhandaputa)

· आधुनिक समतुल्य: Crucible
· संरचना एवं प्रयोजन: एक मजबूत, उच्च ताप सहन करने वाला बर्तन (जैसे मिट्टी या पोर्सिलेन का)। इसमें द्रव्य रखकर सीधे तीव्र अग्नि में गर्म किया जाता है।


चिकित्सकीय महत्व / Clinical Importance for Medical Students

· शोधन (Purification): इन यंत्रों की सहायता से विषैले धातु-खनिज (जैसे पारा, सीसा, तांबा, अभ्रक) को शुद्ध (Detoxify) किया जाता है।
· मारण (Incineration): पुट प्रक्रियाओं द्वारा इन शुद्ध धातुओं को भस्म में बदला जाता है, जो शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित हो जाती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बढ़ाने, पुनर्योजन (Rejuvenation) और विभिन्न रोगों के उपचार में कारगर होती है।
· उन्नत औषधि निर्माण: ये तकनीकें आयुर्वेद में भस्म, रस रत्न, कुपीपाकवती जैसी शक्तिशाली और सूक्ष्म औषधियों के निर्माण का आधार हैं।

निष्कर्ष: ये यंत्र और प्रक्रियाएँ प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों की गहन चिंतनशक्ति और रसायन विज्ञान के प्रति उनकी अद्भुत समझ को दर्शाते हैं। एक आधुनिक चिकित्सक के रूप में इनके सिद्धांतों को समझना, आयुर्वेदिक औषधि निर्माण की वैज्ञानिकता को प्रमाणित करता है।